भोपाल (महामीडिया) उपनिषदों की आज्ञा है कि अन्धकार से प्रकाश की ओर चलो इसी आधार पर दीपोत्सव पर्व अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यह सामाजिक एवं धार्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। अनेक शुभकारी मान्यताओं से परिपूर्ण है दीपावली। मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम के रावण वध एवं अयोध्या में उनके स्वागत पर्व के रूप में भी मनाया जाता है यह उत्सव। यहां ??अधर्म पर धर्म की विजय?? भी है दीपावली जो सभी को सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित व प्रोत्साहित करती है। वर्षा ऋतु की समाप्ति एवं शरद ऋतु के स्वागत में स्वच्छता की प्रेरणा देता है यह पर्व। सम्पूर्ण प्रकृति अपने सर्वश्रेष्ठ स्वरूप में आती है। मानो वह भी संकेत दे रही है कि जीवन प्रतिपल अन्धकार से प्रकाश की ओर चलने का ही नाम है। यह प्रकाश हमें ज्ञान प्रदान करता है साथ ही हमें अधर्म से धर्म की ओर प्रेरित करता है। सत् संकल्पों की पूर्ति करता है यह पर्व। हम सभी व्यक्तिगत रूप से इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं और उनके स्वागत में की गई तैयारियों को उन्हें समर्पित करते हैं। साथ ही यह प्रण भी लेते हैं कि माँ आपके आर्शीवाद स्वरूप जो कुछ भी हमारे पास है हम आपको समर्पित करते हैं और इस वर्ष जो कमियां रह गई हैं उनको पूर्ण करने का प्रयास करेंगे। यह वह संवाद हम अपने अर्न्तमन में माँ लक्ष्मी के प्रति कृतज्ञता एवं आगामी वर्ष में हमारी प्रगति स्वरूप कुछ प्रण लेते हैं और आशा करते हैं कि माता अपना आशीर्वाद हमें प्रदान करेंगी, जिसके फलस्वरूप हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे। एक और महत्वपूर्ण शब्द "धन" को परिभाषित करता है यह पर्व। वह यह है कि हम धन की देवी माता लक्ष्मी को मानते हैं किंतु वह किस धन की देवी हैं? वह साहस रूपी धन की देवी हैं, वह विश्वास रूपी धन की देवी हैं, वह ज्ञान रूपी धन की देवी हैं, वह प्रकाश रूपी धन की देवी हैं। इस धन को प्राप्त करना सहज भी है और असहज भी जो भोलेभाव से लक्ष्मी जी का वंदन करते हैं उन्हें सहज रूप से ज्ञान, प्रकाश और आनंद रूपी यह धन प्राप्त हो जाता है और जो कुटिलता से चपलता से भौतिक लक्ष्मी अर्थात धन, धान्य, ज्ञान, प्रकाश और आनन्द प्राप्त करना चाहते हैं उनके लिये यह असहज हो जाती हैं उन्हें मात्र सम्पत्ति और धन प्राप्त होता है, उनके जीवन से सुख, शान्ति और आनन्द रूपी लक्ष्मी प्राप्त नहीं होती। अत: प्रत्येक वर्ष यह पांच दिन हमें यह संकेत देते हैं कि हम विनम्र होकर सत्य को धारण करें स्वयं के व्यक्तित्व की नकारात्मकता को खोजें और उसको दूर करने का प्रयत्न करें। मन से रावण जो निकाले, राम उसके मन में हैं। दीपावली हमें स्वयं के अंदर स्थित नकारात्मकता रूपी रावण के दहन के लिये प्रेरित करते हुए ज्ञान, प्रकाश, आनन्द नवीन उत्साह एवं सकारात्मक जीवन की ओर प्रोत्साहित करता है। अत: सम्पूर्ण जीवन में प्रत्येक दीपावली पर्व पर हमें अपने अन्त:करण में यदि कोई नकारात्मकता हो, तो उसको खोज कर उसे समाप्त करने का प्रण लें और इस प्रकार एक दीपावली बाहरी स्वच्छता के साथ अन्त:करण को निर्मल करने का पर्व भी हो जायेगा। परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी सदैव कहा करते थे कि नियमित अभ्यास से कठिन से कठिन कार्य भी सरल हो जाते हैं। अत:भावातीत ध्यान का नियमित प्रात: संध्या का अभ्यास आपको अपने लक्ष्य की ओर ले जायेगा। इसका परिक्षण हम सभी को प्रतिदिन, दिन में दो बार करना चाहिये। प्रात: एवं संध्या को जब आप भावातीत ध्यान का अभ्यास करेंगे तो आपको यह ज्ञात होगा कि मैंने जो अपने अन्त:करण की नकारात्मकता को समाप्त करने का प्रण लिया है उस प्रण के प्रति क्या मैं ईमानदारी के साथ प्रयास कर रहा हूं या नहीं और यह भी कि में अपने लक्ष्य के कितने समीप पहुंच गया हूँ। बल, विवेक, संयम और परोपकार रूपी अश्वों को अपने जीवन रूपी रथ में बांध दीजिये फिर देखिये आपका जीवन मंगलकारी होगा।
।। जय गुरुदेव, जय महर्षि।।