भोपाल (महामीडिया) इस बार चैत्र नवरात्रि 6 अप्रैल यानि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरु हो रहे हैं। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इन नौ दिनों के दौरान मां दुर्गा धरती पर ही रहती हैं। इसलिए इस दौरान विशेष नियमों का पालन कर मां का पूजन करने की बात कही जाती है। नवरात्रि में यदि किसी शुभ कार्य की शुरुआत की जाए, तो उस पर मां की कृपा जरूर बरसती है और वह कार्य सफल होता है। चैत्र नवरात्रि में रेवती नक्षत्र में सुबह 06:09 बजे से 10:21 बजे तक कलश स्थापना का श्रेष्ठ मुहुर्त है।
चैत्र नवरात्र आत्मशुद्धि और मुक्ति के लिए श्रेष्ठ माने गये हैं। चैत्र नवरात्र का विशेष महत्व है क्योंकि इस नवरात्र के दौरान सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। सूर्य 12 राशियों में भ्रमण पूरा करते हैं और फिर से अगला चक्र पूरा करने के लिए पहली राशि मेष में प्रवेश करते हैं। सूर्य और मंगल की राशि मेष दोनों ही अग्नि तत्व वाले हैं इसलिए इनके संयोग से गर्मी की शुरुआत होती है। चैत्र नवरात्र से नववर्ष के पंचांग की गणना शुरू होती है। इसी दिन से वर्ष के राजा, मंत्री, सेनापति, वर्षा, कृषि के स्वामी ग्रह का निर्धारण होता है और वर्ष में अन्न, धन, व्यापार और सुख शांति का आंकलन किया जाता है। नवरात्र में देवी और नवग्रहों की पूजा का कारण यह भी है कि ग्रहों की स्थिति पूरे वर्ष अनुकूल रहे और जीवन में खुशहाली बनी रहे। धार्मिक दृष्टि से नवरात्र का अपना अलग ही महत्व है क्योंकि इस समय आदिशक्ति जिन्होंने इस पूरी सृष्टि को अपनी माया से ढ़का हुआ है जिनकी शक्ति से सृष्टि का संचलन हो रहा है जो भोग और मोक्ष देने वाली देवी हैं वह पृथ्वी पर होती है इसलिए इनकी पूजा और आराधना से इच्छित फल की प्राप्ति अन्य दिनों की अपेक्षा जल्दी होती है।
मान्यता है कि चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा का जन्म हुआ था और मां दुर्गा के कहने पर ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसीलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू वर्ष शुरू होता है। चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में पहला अवतार लेकर पृथ्वी की स्थापना की थी। इसके बाद भगवान विष्णु का सातवां अवतार जो भगवान राम का है वह भी चैत्र नवरात्र में हुआ था। इसलिए धार्मिक दृष्टि से चैत्र नवरात्र का बहुत महत्व है। चैत्र नवरात्रि के पहले तीन दिनों को ऊर्जा माँ दुर्गा को समर्पित है। अगले तीन दिन, धन की देवी, माँ लक्ष्मी को समर्पित है और आखिर के तीन दिन ज्ञान की देवी, माँ सरस्वती को समर्पित हैं। चैत्र नवरात्रि के नौ दिनों में से प्रत्येक के पूजा अनुष्ठान नीचे दिए गए हैं। चैत्र नवरात्रि के पहले दिन "घटत्पन", "चंद्र दर्शन" और "शैलपुत्री पूजा" की जाती है। दूसरे दिन "सिंधारा दौज" और "माता ब्रह्राचारिणी पूजा" की जाती है। तीसरा दिन "गौरी तेज" या "सौजन्य तीज" के रूप में मनाया जाता है और इस दिन का मुख्य अनुष्ठान "चन्द्रघंटा की पूजा" है। चौथा दिन "वरद विनायक चौथ" के रूप में भी जाना जाता है, इस दिन का मुख्य अनुष्ठान "कूष्मांडा की पूजा" है। पांचवे दिन को "लक्ष्मी पंचमी" कहा जाता है और इस दिन का मुख्य अनुष्ठान "नाग पूजा" और "स्कंदमाता की पूजा" जाती है। छठा दिन "यमुना छत" या "स्कंद सस्थी" के रूप में जाना जाता है और इस दिन का मुख्य अनुष्ठान "कात्यायनी की पूजा" है। सप्तमी को "महा सप्तमी" के रूप में मनाया जाता है और देवी का आशीर्वाद मांगने के लिए 'कालरात्रि की पूजा' की जाती है। अष्टमी को "दुर्गा अष्टमी" के रूप में भी मनाया जाता है और इसे "अन्नपूर्णा अष्टमी" भी कहा जाता है। इस दिन "महागौरी की पूजा" और "संधि पूजा" की जाती है। "नवमी" नवरात्रि उत्सव का अंतिम दिन "राम नवमी" के रूप में मनाया जाता है और इस दिन "सिद्धिंदात्री" की पूजा की जाती है।