भोपाल (महामीडिया) अर्धसैनिक बलों की 100 अतिरिक्त कंपनियों को कश्मीर भेजने की खबरों ने अफवाहों को तेज कर दिया है कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार अनुच्छेद 35 ए और 370 को रद्द करने जा रही है। केंद्र ने प्रत्येक पंचायतों को स्वतंत्रता दिवस पर भारतीय ध्वज फहराने और अक्टूबर या नवंबर में घाटी में होने वाले विधानसभा चुनाव कराने के लिए लोगो को प्रोत्साहित करने का भी निर्णय लिया है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की हाल की कश्मीर यात्रा और केंद्र सरकार के इस अचानक लिए फैसले से घाटी की राजनीति के साथ-साथ सामाजिक गगतिविधियों में भी तेजी आई है। केंद्र के इस कदम के विरोध में सभी कश्मीरी नेता लामबंद हो गए हैं । जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने पहले ही केंद्र को चेतावनी देते हुए कहा है कि 'अनुच्छेद 35 ए' और '370' के तहत कश्मीर को मिले विशेष दर्जे के साथ छेड़छाड़ बारूद को हाथ लगाने के बराबर है?। यहां तक कि 15 अगस्त को संभावित खतरों की भी रिपोर्ट मिली है।
इस साल के अंत में राज्य में विधानसभा चुनाव कराने का कदम स्वागत योग्य है। क्योंकि एक वर्ष से अधिक समय से राज्य में राज्यपाल शासन लागू है और लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार ही राज्य में अच्छी तरह शांति बनाए रखने में मदद कर सकती है। अनुच्छेद 35 ए किसी भी गैर कश्मीरी व्यक्ति को राज्य में जमीन खरीदने या बसने से रोकता है, इसे जम्मू और कश्मीर की स्वायत्तता के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच के रूप में देखा जाता है। इसके हटने से, कश्मीरियों को डर है कि इसे निरस्त करने का कोई भी कदम घाटी के जनसांख्यिकीय परिवर्तन के लिए द्धार खोल देगा ।
भाजपा को ऐसा लगता है कि कश्मीर राज्य में जो समस्याएं उत्पन्न हुई हैं उसकी वजह है कि यह भारत से पूरी तरह से एकीकृत नहीं हो पाया है और इसलिए विशेष दर्जा देने वाले प्रावधानों (अनुच्छेद 35 ए) को फिर से लागू किया जाना चाहिए। अफवाहों से घाटी में आशंकाओं का बाजार गर्म है, इसके साथ ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के संसद में दिए बयान ने उसे और बढ़ा दिया, उन्होंने कहा की 'अनुच्छेद ३७०', जो जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करता है, वो "धाराएं अस्थायी है" और स्थायी नहीं है ।
हालांकि इस समय थोड़ा रूककर, अच्छे से विचार करने की जरुरत है। केंद्र को भी समझना चाहिए कि कश्मीर का भारत में विलय विपरीत परिस्थितियों में हुआ था। इतिहासकार के रूप में, श्रीनाथ राघवन ने तर्क दिया है, यह दोनों अनुच्छेद 370 और 35 ए इसी विरासत की देन है।
यह सोचना कि ये अनुच्छेद किसी पत्थर की तरह स्थायी है। यह वास्तव में अस्थायी प्रावधान थे। लेकिन इन प्रावधानों को हटाने के लिए कोई कदम उठाने से पहले कश्मीर के राजनितिक दलों से बात करनी चाहिए, विशेष रूप से नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) जैसी पार्टियों से, जो मुश्किल समय में भारतीय संविधान के साथ खड़े हुए थे । इसलिए, केंद्र को अपने अधिकारों का पालन करना चाहिए, लेकिन व्यवधान से भी बचना चाहिए।