भोपाल (महामीडिया) राजकुमार शर्मा केंद्र ने हाल ही में राज्यों को सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में निशुल्क औषधियां और नैदानिक सेवाएं मुहैया कराने में सहायता देने के लिए योजना शुरू की है। इससे और उस क्षमता से अधिक खर्च में कमी लाने में मदद मिलेगी, जो गरीबों को सरकारी अस्पतालों तक में वहन करना पड़ता है। हालांकि सरकारी अस्पतालों में ओओपीई निजी स्वास्थ्य सेवाओं की लागत से अमूनन एक-तिहाई से कम, और तो और उनके दसवें हिस्से से भी कम है लेकिन यह बची हुई राशि भी ज्यादातर भारतीयों को निर्धन बना रही है। इस बात पर सर्वसम्मति बढ़ती जा रही है कि व्यापक पहुंच और वित्तीय संरक्षण उपलब्ध कराने का सबसे कारगर तरीका सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं में उपयोगकर्ता शुल्क समाप्त करना और निशुल्क दवाओं और नैदानिक सुविधाएं उपलब्ध कराना है। सरकार द्वारा शुरू किया गया तीसरा उपाय सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित बीमा योजनाएं हैं, जो गरीबों के अस्पताल में भर्ती होने पर आने वाले खर्च को वहन करती है। इस संदर्भ में केंद्र सरकार की प्रमुख योजना-राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना है, तो मोटे तौर पर द्वितीय श्रेणी की स्वास्थ्य सेवा की जरूरतें पूरी करती है। इसके अलावा आठ या उससे ज्यादा राज्यों ने बीमा कार्यक्रम शुरू किए हैं, जो तीसरी श्रेणी की स्वास्थ्य सेवा की जरूरतें पूरी करते हैं। इन विविध योजनाओं में सांकेतिक जनसंख्या की कवरेज 2014 में करीब 370 मिलियन थी। इस आबादी का लगभग दो-तिहाई हिस्सा गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों की श्रेणी का है। हालांकि इस बारे में संदेह उठते रहे हैं कि प्रभावी कवरेज क्या है इसका आशय यह है कि जिन्हें आधिकारिक रिकार्डस के मुताबिक कवर किया गया है, क्या जरूरत पड़ने पर उन्हें वास्तव में अस्पताल में भर्ती होने पर निशुल्क सुविधाएं मिल रही हैं या नहीं। मंत्रालय इन बीमा कार्यक्रमों को एकल मंच पर लाने के विकल्प पर विचार कर रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित बीमा कार्यक्रमों को सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के प्रावधानों के ज्यादा करीब लाते हुए उनका एकीकरण करने पर विचार कर सकता है। इस प्रकार आधारित मांग से संचालित वित्त पोषण वाले बीमा स्वरूप का पुनः उदय हो सकता है, जो सार्वजनिक प्रावधानों का विकल्प बनने के स्थान पर उनको सहायता और पूर्णता प्रदान करती हो। निजी क्षेत्र के आकार को देखते हुए-बेशक इस बात की तत्काल आवश्यकता है कि उसके साथ संबंध जोड़ा जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि वह सार्वजनिक स्वास्थ्य के लक्ष्यों के प्रति योगदान दे। बीमा, निस्संदेह ऐसा करने का उत्कृष्ट तरीकों में से एक है लेकिन इसे नियामक स्तर पर ज्यादा ज्यादा प्रयास करके सहायता पूर्णता प्रदान करने की आवश्यकता है। समस्त देश, जिनमें निजी सेवा प्रदाताओं से खरीद पर आधारित स्वास्थ्य प्रणाली है, वहां व्यापक नियामक व्यवस्था लागू है। भारत में ऐसी व्यवस्था लागू करना चुनौतीपूर्ण है। चिकित्सकीय प्रतिष्ठान अधिनियम बहुत ही साधारण शुरुआत है लेकिन इसके कार्यान्वयन के लिए चिकित्सा व्यवसाय का भरोसा जीतना अभी बाकी है। सार्वजनिक रूप् से वित्त पोषित स्वास्थ्य बीमा को वित्तीय संरक्षण और सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करने वाले सार्थक स्तरों में परिवर्तित करने के लिए उपयुक्त नियामक ढांचा बनाने के वास्ते निजी सेवा प्रदाता और सरकार के बीच कहीं ज्यादा विश्वास और सहयोग की जरूरत होगी। निजी क्षेत्र की वृद्धि का मार्गदर्शन करने के लिए बीमा और विनियमन के अलावा अन्य रास्ते भी हैं। शिकायत निवारण तंत्र निजी क्षेत्र के लिए मददगार हो सकता है। साथ ही छोटे सेवा प्रदाताओं और नर्सिंग होम्स के लिए प्रशिक्षण एवं कौशल में सुधार का प्रावधान भी सहायक हो सकता है। गैर-लाभकारी वर्गों के साथ भागीदारी करने से भी व्यापक लाभ हो सकता है, जिनके लिए कम कड़े विनियमों की जरूरत होती है। गौण अथवा सहायक सेवाओं के लिए भागीदारी, जो सार्वजनिक सेवा प्रावधानों का विकल्प प्रस्तुत करने की जगह उन्हें पूर्णता प्रदान करती है। मिसाल के तौर पर डायल 108 सेवाओं ने अच्छा प्रदर्शन किया है। हमें राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत शुरू किए गए प्रयासों को बनाए रखने, उनमें तेजी लाने और उनका दायरा बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि हम उस मिशन द्वारा हासिल प्रगति को बरकरार रख सके। विशेषकर हमें यह दायरा शहरी प्राथमिक सेवा और चार बड़े हिंदी भाषी राज्यों तक फैलाने पर ध्यान केंद्रित होगा। स्वास्थ्य सेवा में निजी क्षेत्र को जोड़ने की दिशा में ज्यादा बड़े प्रयास किए जाने की जरूरत है, वहीं यह प्रबंधन और सहायक प्रयासों पर आधारित होना चाहिए, जो सूचना की विविध प्रकार की असमानताओं और हितों के टकराव को समाप्त करता हो तथा लोगों को सही फैसला करने का अधिकार देता हो। विनियमक तंत्र बनाए बगैर और उच्च स्तरीय सार्वजनिक निवेश के लिए राजनीतिक रूप से तैयार हुए बगैर, खरीद पर आधारित सेवाओं की दिशा में अपरिपक्व और बिना तैयारी के परिवर्तित होना जोखिम से भरपूर हो सकता है। सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों को सदृढ़ बनाने में चुनौती कार्यबल की तादाद बढ़ाने, निवेश और प्रशासन में वृद्धि करने में है, ताकि आरसीएच में और संक्रामक रोग नियंत्रण की दिशा में हुई प्रगति से समझौता किए बिना ही असंक्रामक रोगों की चुनौतियों से निपटा जा सके।