कानपुर (महामीडिया) भारत विविधताओं का देश यूं ही नहीं कहा जाता। न ही अकारण यह कहा गया कि कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी। यहां के अनोखे और वैज्ञानिक रीति-रिवाजों की तो दुनिया कायल है। इन्हीं में से कुछ पंरपराएं ऐसी हैं, जिनके बारे में हम ही कुछ नहीं जानते या बहुत कम जानते हैं। कुछ इसी श्रेणी में आती हैं जोगी जनजाति की परंपराएं, जिनके बारे में शायद हम कल्पना भी नहीं कर सकते। बीन के इशारे पर सांप पकड़कर नचाने वाले ये जोगी कभी गांव-गांव, गली-गली घूमते दिखते थे। इसी से इनका और परिवार का पेट पलता था। यह लगभग बंद सा हो गया है, क्योंकि सांप पकड़कर रखना अब अपराध की श्रेणी में आता है। इसके चलते कुछ मजबूरी में भीख मांगने लगे तो कुछ मजदूरी-खेती में लग गए। कई ने नागिन बैंड खोल लिया है। कुछ के बच्चे अब पढ़ाई भी करने लगे हैं। इन सबके बावजूद ये अपनी परंपराओं से समझौता नहीं करते।
बेटियों की महत्ता जाननी हो तो जोगी समाज से सीख लेनी चाहिए। घर में लड़की नहीं है तो लड़के की शादी के लाले पड़ जाते हैं। उसे कठिन परीक्षा से भी गुजरना होता है। सैकड़ों साल से इस समाज की व्यवस्था है कि जिस परिवार से बहू लानी होती है, उसी परिवार में अपनी बेटी को बहू बनाकर भेजना पड़ता है। इस परंपरा को साटी पल्टा कहा जाता है। कोई लड़का ब्याह लायक हो, लेकिन उसकी कोई बहन न हो तो वह अपने कुनबे या रिश्तेदारों से लड़की उधार लेता है। उसके परिवार में जब भी लड़की जन्म लेती है, उधार ली गई लड़की के बदले वापस करनी पड़ती है। यदि यह भी संभव नहीं तो लड़के को लड़की के यहां घर जमाई बनकर रहना पड़ता है। दोनों पक्षें के बीच तय समय तक लड़के को अपनी होने वाली ससुराल में रहकर मवेशी चराने पड़ते हैं। चारा आदि भी लाना पड़ता है।
किसी लड़के-लड़की की शादी की तिथि निर्धारित होने पर मुखिया पंचायत बुलाता है और पूरे समाज को शादी में आने का न्योता देता है। शादी में बीन-झोली देना अनिवार्य है। शादी के दिन बारातियों व मेहमानों को दूध व मखन साथ लाना पड़ता है। शादी से एक दिन पहले दूल्हा-दूल्हन दोनों के घरों में मेहंदी की रस्म होती है। इनके यहां महिला नहीं बल्कि पुरुष संगीत का आयोजन होता है। पुरुष पूरी रात सूफियाना अंदाज मे गाते हैं, जिसे धैत कहा जाता है। जोगी समुदाय के मुखिया शरीफनाथ बताते हैं कि पूरे समारोह में वाद्य यंत्र का प्रयोग पूर्ण रूप से वर्जित रहता है।
आपस में किसी तरह का विवाद होने या किसी अपराध की शिकायत समुदाय के लोग मुखिया से शिकायत करते हैं। मुखिया पंचायत बैठाकर फैसला करता है और इसी पंचायत में दंड तय होता है। मनांवा जोगिन डेरा इस समुदाय में हाईकोर्ट माना जाता है। हर जिले में एक डेरा निश्चित है जिसे छोटी अदालत कहा जाता है। पहले मामले की सुनवाई छोटी अदालत में होती है निपटारा न होने पर मामला बड़ी अदालत (हाईकोर्ट) में जाता है।
उप्र में कानपुर, कानपुर देहात, लखनऊ, इटावा, मैनपुरी, कन्नौज, बिजनौर, फर्रुखाबाद, फतेहगढ़, उरई, हरदोई, लालपुर, ककोड़, किशनी, अर्जनपुर, बागपुर, बंशठी, भिमान, हसेरन, बरोली, इंदरगण, औनाहा, याकूबपुर, समेत कई स्थानों पर कबीले बनाकर रह रहे हैं।